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निपॉन इंडिया म्यूचुअल फंड ने इन अंतरराष्ट्रीय स्कीमों को किया बंद, निवेशक जान लें पूरी डिटेल

निपॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (NIMF) पहला फंड हाउस बन गया है, जिसने अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कीमों को दोबारा बंद करने का ऐलान किया है.

निपॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (NIMF) पहला फंड हाउस बन गया है, जिसने अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कीमों को दोबारा बंद करने का ऐलान किया है. इसकी वजह है कि सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने फंड हाउस को विदेशी शेयरों में निवेश करने के लिए अस्थायी सीमा दी थी.

निपॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (NIMF) पहला फंड हाउस बन गया है, जिसने अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कीमों (Investment Schemes) को दोबारा बंद करने का ऐलान किया है. इसकी वजह है कि सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) (Sebi) ने फंड हाउस को विदेशी शेयरों में निवेश (Investment) करने के लिए अस्थायी सीमा दी थी. निपॉन इंडिया म्यूचुअल फंड ने अपनी स्कीमों- निपॉन इंडिया यूएस इक्विटी Opportunities फंड, निपॉन इंडिया जापान इक्विटी फंड, निपॉन इंडिया ताइवान इक्विटी फंड, निपॉन इंडिया मल्टी एसेट फंड और निपॉन इंडिया ईटीएफ हैंग सैंग BeES को खोलने का ऐलान किया था.

सेबी ने लगाई थी निवेश की सीमा

मार्केट रेगुलेटर सेबी ने कहा था कि फंड हाउस विदेशी शेयरों में उस सीमा तक निवेश कर सकते हैं, जिसमें उन्होंने 1 फरवरी 2022 से ऐसे शेयरों की बिक्री की हो. हालांकि, ये सीमाएं एक हफ्ते के भीतर खत्म हो गईं. इसलिए निपॉन इंडिया एमएफ ने दोबारा इन स्कीम्स को बंद करने का फैसला किया है. इसके अलावा और फंड हाउस को भी अपनी स्कीम्स को दोबारा बंद करनी पड़ सकती हैं, क्योंकि ये नई सीमाएं ज्यादा होने की उम्मीद नहीं हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्कीम्स में ज्यादा रिडेंपशन्स नहीं देखे गए हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा विदेशी शेयर नहीं बेचने पड़ेंगे.

विदेशी निवेश करने की सीमा 1 फरवरी से लागू हुई है. और क्योंकि सीमाओं को नहीं बढ़ाया गया था, इसलिए ज्यादातर फंड हाउस को अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कीमों में फ्लो मंजूर करने को बंद करना पड़ा है.

सेबी ने म्यूचुअल फंड्स के लिए विदेशी सिक्योरिटीज में निवेश करने की कुल इंडस्ट्री सीमा को 7 अरब डॉलर और इंडीविजुअल लिमिट को प्रत्येक स्कीम के लिए 1 अरब डॉलर तय किया है.

आपको बता दें कि म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले लोगों को डिविडेंड पर टैक्स देना होता है. यहां डिविडेंड का अर्थ लाभांश से है. निवेशक को लाभ का जो अंश मिलता है, उसे ही लाभांश या डिविडेंड कहते हैं. इस डिविडेंड पर टैक्स काटने का नियम है. अगर आप सैलरी पाने वाले व्यक्ति हैं तो आपको पता होगा कि आपकी कंपनी आपकी सैलरी पर टीडीएस काटती है जिसे बाद में टैक्स रिटर्न भरकर वापस करा लिया जाता है. लेकिन म्यूचुअल फंड के मामले में टीडीएस का अलग नियम है.

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म्यूचुअल फंड की होल्डिंग पीरियड के आधार पर टैक्स की देनदारी निर्भर करती है. शेयर या म्यूचुअल फंड को एक साल के बाद बेचने पर 10 परसेंट टैक्स देना होता है.

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