Wed. Mar 29th, 2023
योगी के दावे पर BJP की प्लानिंग शुरू, आजमगढ़-रामपुर के बाद पार्टी का फोकस रायबरेली और मैनपुरी पर

सोनिया गांधी और मुलायम सिंह यादव

Image Credit source: टीवी9 भारतवर्ष

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 2024 में प्रदेश की लोकसभा की सभी अस्सी सीटें जीतेंगे. पार्टी इस दावे को सच में बदलना चाहती है मोदी – शाह के दौर की बीजेपी हमेशा चुनावी मोड में रहती है.

…अब रायबरेली और मैनपुरी. आजमगढ़ और रामपुर की जीत के बाद बीजेपी विपक्ष के बड़े चेहरों सोनिया गांधी और मुलायम सिंह के कब्जे वाली इन दो सीटों पर खासतौर पर फोकस कर रही है. वैसे निगाह उसकी इन दो सहित उत्तर प्रदेश की उन सभी चौदह सीटों पर है, जिनपर फिलहाल गैर बीजेपी दलों का कब्जा है. आजमगढ़ और रामपुर की जीत ने बीजेपी के हौसलों को नई उड़ान दी है. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 2024 में प्रदेश की लोकसभा की सभी अस्सी सीटें जीतेंगे. पार्टी इस दावे को सच में बदलना चाहती है मोदी – शाह के दौर की बीजेपी हमेशा चुनावी मोड में रहती है. नतीजों की घोषणा के साथ अगले चुनाव की जमीनी तैयारी शुरू हो जाती हैं. पार्टी एक बार फिर इसे दोहराती दिख रही है. उसने केंद्र के चार मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, अश्विनी वैष्णव , जितेंद्र सिंह और अन्नपूर्णा सिंह को विपक्षी खेमे की इन सीटों पर ध्यान और समय देने की जिम्मेदारी सौंप दी है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सहयोगी अपना दल की दो सहित बीजेपी की कुल सीटें 64 थी. आजमगढ़ और रामपुर की जीत ने यह संख्या 66 कर दी है. विपक्ष की मौजूदा 14 सीटों में बसपा के खाते में दस,सपा के तीन और कांग्रेस के पास इकलौती रायबरेली सीट है. उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से कांग्रेस लगातार हाशिए पर है. हाल के 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल दो सीटों पर जीत मिली थी. उधर 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में राहुल गांधी की शिकस्त के साथ देश के सबसे बड़े प्रदेश से लोकसभा में कांग्रेस की हाजिरी रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी के जरिए लग रही है. यद्यपि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस को फिलहाल किसी चुनौती के रूप में नहीं देखा जाता, लेकिन केंद्रीय स्तर पर अभी भी कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है. राहुल गांधी की लगातार विफलताओं के बीच सोनिया गांधी पार्टी का बड़ा चेहरा है. रायबरेली प्रदेश में कांग्रेस की उपस्थिति का अहसास देती है. बीजेपी इसे भी तोड़ने के लिए 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से कोशिश में है. 2017 में प्रदेश में भी सरकार बन जाने के बाद इसमें और तेजी आई.

अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार की पारिवारिक सीटें मानी जाती रही है. 2019 में खुद को अमेठी में असुरक्षित पा रहे राहुल ने दूसरी सीट वायनाड की भी शरण ले ली थी. अमेठी ने उनसे मुंह मोड़ कर अपना जबाब दिया. स्मृति ईरानी ने 2014 की हार का हिसाब चुकता कर लिया और क्षेत्र को गांधी परिवार का गढ़ समझे जाने का मिथ टूट गया. रायबरेली में बीजेपी के पास सोनिया के मुकाबले के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं था, फिर भी सोनिया की जीत का अंतर 2014 के 3,53,713 के मुकाबले 2019 में घटकर 1,67,178 रह गया. उनसे पराजित होने वाले दिनेश प्रताप सिंह को राज्य मंत्रिमंडल में स्थान देकर बीजेपी ने भविष्य की तैयारियों के संकेत दे दिए है. बाजू की अमेठी संसदीय सीट का एक विधानसभा क्षेत्र सलोन रायबरेली जिले का हिस्सा है. स्वाभाविक रूप से इसके चलते स्मृति ईरानी की रायबरेली में गतिविधियां तेज रहती है. उधर स्वास्थ्य कारणों से अपने संसदीय क्षेत्र में सोनिया गांधी की उपस्थिति घटती जा रही है.

हार के बाद राहुल गांधी अमेठी से उदासीन है. प्रियंका गांधी वाड्रा की पारिवारिक सीटों पर मौजूदगी चुनावों तक सिमटी हुई है. प्रदेश से केंद्र तक सत्ता से बेदखली और अपने सांसद की अनुपस्थिति में स्थानीय कार्यकर्ताओं में मायूसी है. रायबरेली और अमेठी की जनता का गांधी परिवार से गहरा भावनात्मक लगाव रहा है. परिवार को इसका बड़ा लाभ मिलता था. लेकिन वह दौर अब पीछे छूट चुका है. कांग्रेस की यह दुर्दशा बीजेपी के लिए बेहद मुफीद है. 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की छह में चार सीटें सपा और दो बीजेपी ने जीतीं थी. हालांकि लोकसभा के चुनाव में मतदाताओं की प्राथमिकताएं आमतौर पर बदली नजर आती हैं लेकिन इसी के साथ गांधी परिवार के लिए राहत की बात है कि सपा लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारती.

मैनपुरी के रण का ज्यादा महत्व है. सिर्फ इसलिए नहीं कि फिलहाल वहां की नुमाइंदगी मुलायम सिंह यादव कर रहे है. महत्व इसलिए अधिक है कि परमरागत रूप से यह इलाका बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंदी सपा का गढ़ रहा है. इस सीट के नतीजों का संदेश दूर तक जाता है. बीजेपी ने इलाके में अपनी ताकत लगातार बढ़ाई है. 2024 तक बीजेपी वहां बाजी पलटने लायक ताकत हासिल करने की कोशिश में है. 2022 के विधानसभा चुनाव के मौके पर अखिलेश यादव ने अपने तत्कालीन लोकसभा क्षेत्र आजमगढ़ की किसी विधानसभा सीट के स्थान पर मैनपुरी की करहल सीट को ज्यादा सुरक्षित पाया. बड़े अंतर से इस पर जीत भी दर्ज की. जिले की चार में करहल सहित दो पर सपा और दो अन्य विधानसभा सीटों पर इस चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. मैनपुरी की पांचवीं विधानसभा सीट जसवंतनगर ( इटावा जनपद) पर शिवपाल सिंह यादव का कब्जा है. चाचा भतीजे के तल्ख़ रिश्ते जगजाहिर हैं और इलाके के अन्य चुनावों में इसका असर भी दिखा है.

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2019 में मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव को मिले 5,24,926 वोटों की तुलना में बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट हासिल हुए थे. फिलहाल मुलायम सिंह यादव वृद्धावस्था से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे है. चुनावों में उनकी उपस्थिति अब प्रतीकात्मक ही रहती है. यादव परिवार के तीन सदस्य डिंपल, धर्मेंद्र और अक्षय यादव पराजित लोगों की कतार में लग चुके है. शिवपाल यादव के लिए अब अखिलेश की हार खुद की जीत है. अपर्णा यादव बीजेपी के साथ खड़ी है. बेशक पार्टी पर कब्जे की लड़ाई में अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह यादव को पराजित किया लेकिन आज भी अखिलेश की राजनीतिक पूंजी पिता की विरासत और उनके द्वारा तैयार वोट बैंक है. इस वोट बैंक के जरिए 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव की हार के बाद भी अखिलेश उत्तर प्रदेश में बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंदी बने हुए है. रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनावों की हार ने इस वोट बैंक में भी बिखराव के संदेश दिए है. अखिलेश का जिस बीजेपी से मुकाबला है , वह दो मोर्चों पर एक साथ लगातार पांच साल काम करती है. एक – अपने प्रतिद्वंदी के प्रतिकूल सामाजिक समीकरणों को माफिक करने की कोशिश. दो – प्रतिद्वंदी के वोट बैंक में अपने लिए संभावनाएं खोजने की. चुनावी नतीजे उसकी कामयाबी के सबूत है. इसकी काट के लिए अखिलेश यादव की क्या तैयारियां हैं ? क्या नया जोड़ा या पुराने को बचाने के लिए क्या जतन किए ? जबाब के लिए प्रतिद्वंदियों की जगह उनके सहयोगियों की नाराजगी और निराशा समेटे प्रतिक्रियाओं पर गौर करना चाहिए.

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