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CM का तो पता है, ये Deputy CM क्या करते हैं...  क्या सीएम एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र में न होने पर देवेंद्र फडणवीस चलाएंगे सरकार?

डिप्‍टी सीएम के तौर पर देवेंद्र फडणवीस के पास क्‍या अधिकार होंगे?

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Power of Deputy CM: संवैधानिक मामलों के जानकार सिद्धार्थ झा बताते हैं कि संविधान में अलग से डिप्टी पीएम यानी उप प्रधानमंत्री पद का भी टर्म नहीं है और इसलिए उन्हें अलग से विशेष अधिकार नहीं होते.

Power of Deputy Chief Minister: महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार गिर चुकी है और शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. वहीं 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने डिप्टी सीएम यानी उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली है. विरोधी जहां इसे फडणवीस का डिमोशन बता रहे हैं तो वहीं बीजेपी फडणवीस को बड़े दिल वाला नेता बता रही है. बहरहाल फडणवीस डिप्टी सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. अब सवाल ये है कि उनके पास सरकार में रहते हुए क्या विशेष अधिकार होंगे. क्या जिस तरह राष्ट्रपति के बाद उप राष्ट्रपति के पास विशेष अधिकार होते हैं, उसी तरह मुख्यमंत्री के बाद उप मुख्यमंत्री के पास भी कुछ विशेष अधिकार होते हैं? क्या जब राज्य में मुख्यमंत्री न हों तो उप मुख्यमंत्री राज्य को अपने अनुसार चला सकते हैं?

मुख्यमंत्री के बारे में तो सबको पता होता है कि वे राज्य के मुखिया होते हैं, किसी नई योजना के पास होने में, कैबिनेट मीटिंग में या राज्य में लिए जाने वाले फैसलों में उनकी भूमिका रहती है. लेकिन क्या उप मुख्यमंत्री के पास भी ऐसे अधिकार होते हैं? क्या आप ये जानते हैं कि डिप्टी सीएम यानी उप मुख्यमंत्री का काम क्या होता है?

संवैधानिक नहीं है डिप्टी सीएम का पद, नहीं चला सकते राज्य

आपको जाानकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह सच है. उप-मुख्यमंत्री पद संवैधानिक नहीं है. दरअसल संविधान में उप-मुख्यमंत्री जैसे किसी पद का उल्लेख ही नहीं है. यहां तक कि शपथ-ग्रहण समारोह के दौरान नए सीएम भले ही मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लें, लेकिन डिप्टी सीएम अलग से इस तरह का शपथ नहीं ले सकते. उन्हें मंत्री के तौर पर शपथ लेना होता है.

इस पद पर बैठे व्यक्ति को मुख्यमंत्री के बराबर शक्तियां या अधिकार प्राप्त नहीं होते. ऐसा भी नहीं है कि वे मुख्यमंत्री के ना होने पर यानी उनकी अनुपस्थिति में सरकार चलाएं. यानी उन्हें मुख्यमंत्री के प्रदेश से कहीं बाहर होने पर प्रदेश की अगुवाई करने का अधिकार नहीं होता.

कई बार ऐसा होता है कि मुख्यमंत्री को राज्य से बाहर की यात्रा करनी होती है. कई बार वह देश से भी बाहर हो सकते हैं. ऐसे में जरूरी राजकीय कामों को पूरा करने के लिए वे अपने मंत्रिमंडल में से किसी वरिष्ठ मंत्री कुछ पावर दे सकते हैं. जरूरी नहीं कि वह व्यक्ति डिप्टी सीएम ही हो.

अलग से कोई विशेष अधिकार नहीं!

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा ही, डिप्टी सीएम का पद कोई संवैधानिक पद नहीं है. ऐसे में उनके पास अलग से कुछ​ विशेष शक्तियां या अधिकार नहीं होते हैं. लोकसभा टीवी में डेढ़ दशक तक काम कर चुके संवैधानिक मामलों के जानकार सिद्धार्थ झा बताते हैं कि संविधान में अलग से डिप्टी पीएम यानी उप प्रधानमंत्री तक का जिक्र नहीं है और उन्हें भी प्रधानमंत्री की तरह अलग से विशेष अधिकार नहीं होते.

सिद्धार्थ कहते हैं, अगर डिप्टी सीएम का पद संविधान में होता, तो ऐसे में कोई भी फाइल प्रॉपर चैनल से होते हुए ऊपर जाती. यानी कि मुख्यमंत्री से पहले वह उप मुख्यमंत्री के पास पहुंचती और फिर वहां से मुख्यमंत्री तक पहुंचती. लेकिन ऐसा नहीं होता.

डिप्टी सीएम केवल वही विभाग देख सकते हैं, ​जो उनके जिम्मे होता है. यानी कैबिनेट में जो विभाग उन्हें सौंपा जाता है, उन्हीं विभागों तक उनका अधिकार होता है. यानी एक तरह से उप मुख्यमंत्री को भी दूसरे मंत्रियों की तरह सुविधाएं मिलती हैं. उन्हें डिप्टी सीएम होने के नाते अलग से कोई सुविधा या भत्ते नहीं मिलते हैं. वे सिर्फ अपने विभागों के अंदर सीमित होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था डिप्टी पीएम का मामला

सिद्धार्थ बताते हैं कि डिप्टी सीएम की तरह डिप्टी पीएम यानी उप प्रधानमंत्री के पद को भी संवैधानिक मान्यता नहीं होती है. इस पद से जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया था. यह बात है 1989 की. तब देवीलाल चौधरी को शपथ दिलाया जा रहा था. उन्हें मंत्री पद की शपथ लेनी थी. लेकिन शपथ ग्रहण के दौरान वह बार-बार खुद को उप प्रधानमंत्री कह रहे थे. ऐसे में उन्हें टोका गया.

बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कहा कि भले वे खुद को उप प्रधानमंत्री मानें लेकिन उनके अधिकार केंद्रीय मंत्री की तरह ही रहेंगे. इसपर भी सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में इस टर्म के ना होने को कारण बताया था. सिद्धार्थ बाताते हैं कि डिप्टी सीएम के मामले में भी यही बात लागू होती है.

महाराष्ट्र के मामले में भी यही बात लागू होगी. यानी एकनाथ शिंदे के राज्य से बाहर होने की स्थिति में यह जरूरी नहीं कि देवेंद्र फडणवीस सरकार चलाएंगे.

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